परीकथाओं से विज्ञान कथाओं तक

pari-kathayen दोस्तो, चलो परियों की बातें करते हैं। हंसती, खिलखिलाती सुंदर परियों की। सोन परी, नील परी, लाल परी!

अच्छा बताओ, तुम्हें कहां मिलती थीं वे परियां? परी कथाओं में? हमने अपनी आंखों से उन्हें कभी नहीं देखा, लेकिन जब भी कोई परी कथा पढ़ी तो वे हमारे मन के ऊंचे आसमान में उड़ने लगीं। हमारे मन के आसमान में उड़ने के लिए इन्हें किसने भेजा?

मां ने, नानी ने या शायद दादी ने। और, परियों की कथा लिखने वाले हमारे प्रिय लेखकों ने। इन सबने परियों की मजेदार कहानियां गढ़ीं। हमारा मन बहलाने और हमें दया व करुणा का पाठ पढ़ाने के लिए परियों की नई-नई कहानियां सुनाईं। बोलने वाले पशु-पक्षियों, अप्सराओं, जादूगरनियों, देव और दानवों तथा मजेदार बौनों की कहानियां सुनाईं।

दो हजार वर्ष पहले पंडित विष्णु शर्मा ने ‘पंचतंत्र’ की कहानियां सुनाईं। लगभग ढाई हजार वर्ष पहले यूनान के विद्वान ईसप ने भी पशु-पक्षियों की कहानियां सुना कर नीति की शिक्षा दी। पंचतंत्र और ईसप की कहानियों से बच्चों को ज्ञान तो मिला ही, उन्होंने पशु-पक्षियों से प्यार करना भी सीखा।

ग्रिम बंधुओं की परीकथाओं ने दुनिया भर में बच्चों का मन मोह लिया। ‘सिंड्रेला’, ‘स्नोह्वाइट’ और ‘सात बौने’, ‘तीन नन्हे सुअर’, ‘गोल्डिलॉक्स और तीन भालू’ उनकी प्रसिद्ध परीकथाएं हैं। ग्रिम बंधुओं की परीकथाओं की पहली पुस्तक सन् 1812 में छपी थी।

उसके छह वर्ष बाद सन 1818 में अंग्रेज लेखिका मेरी शैली का एक उपन्यास छपा। नाम था- फ्रैंकनस्टाइन’। इटली के वैज्ञानिक लुइगी गेलवानी ने मरे मेढक की टांग में तार जोड़कर उसमें हरकत करा दी थी। मैरी शैली ने इसी विचार के आधार पर उपन्यास लिखा। उपन्यास का वैज्ञानिक ‘फ्रैंकनस्टाइन’ मरे हुए आदमियों के अंगों से एक नया आदमी बना देता है। वह राक्षसों की तरह व्यवहार करता है। इस कथा को पहली ‘विज्ञान कथा’ माना जाता है।

सन् 1824 में डेनमार्क के विश्व प्रसिद्ध लेखक हेन्स क्रिश्चियन एंडरसन की परीकथाओं की किताब छपी। उन्होंने ‘नन्ही जलपरी’, ‘राजा के नए कपड़े’, ‘राजकुमारी और मटर’ तथा ‘बीटल की यात्राएं’ जैसी प्रसिद्ध कहानियां लिखीं। और हां, अंग्रेज लेखक लेविस कैरोल ने तुम्हारी प्रिय परीकथा ‘एलिस इन वंडरलैंड’ सन् 1865 में लिखी थी।

the-blue-fairy-book अच्छा, अब सुनो दोस्तो। जब इन लेखकों की परीकथाओं की परियां बच्चों के मन के आसमान में उड़ रही थीं, आश्चर्य लोक की सैर कर रही थीं, तभी कुछ नई कहानियों के हीरो किसी जादुई चमत्कार या अलौकिक शक्ति से नहीं, बल्कि किसी साधन से रोमांच भरी यात्राएं करने लगे। परीकथाओं की परियों के पास जादू की छड़ी और जादूगरनियों के पास जादुई ताकत होती थी। ऐसी जादुई ताकत, चमत्कार या अलौकिक शक्ति का कोई प्रमाण नहीं होता। इन नई तरह की कहानियों के हीरो विज्ञान के साधनों का उपयोग करने लगे। वे बैलूनों में बैठ कर आसमान में उड़ने लगे। पनडुब्बी में सागरों की अतल गहराई में पहुंच गए। यहां तक कि सोए हुए ज्वालामुखी के रास्ते धरती के भीतर पहुंच गए। समझ गए न? मैं फ्रांसीसी लेखक जूल्स वर्न की बात कर रहा हूं। उन्होंने सन् 1863 में ‘बैलून में पांच सप्ताह’ उपन्यास लिखा। उसके बाद ‘धरती के गर्भ में’, ‘पृथ्वी से चंद्रमा तक 97 घंटे 20 मिनट में और उसकी परिक्रमा’, ‘20,000 लीग सागर के भीतर’ और ‘80 दिन में पृथ्वी की परिक्रमा’ जैसे 60 से भी अधिक उपन्यास लिखे। जूल्स वर्न को विज्ञान कथाओं का जनक कहा जाता है।

परीकथाओं में जहां कल्पना के पंख थे, इन नई कहानियों में विज्ञान और तकनीकी ज्ञान का सहारा लिया गया। इस तरह कहानियों में कल्पना के पंखों से विज्ञान की संभावनाओं तक का सफर शुरू हो गया। इन नई कहानियों को भी ‘विज्ञान कथा’ कहा गया। इन्हें पढ़ते हुए पाठकों को लगा कि…ऐसा तो हो सकता है! और, हुआ। आज तुम जानते हो कि बैलूनों के बाद हवाई जहाज बने, राकेट और अंतरिक्षयान बने। आदमी चांद पर पहुंच गया। विज्ञान कथाओं में इनका आविष्कार पहले ही हो चुका था।

जूल्स वर्न ने अपनी कहानी ‘पृथ्वी से चंद्रमा तक’ में जो कल्पना की थी वह सच के इतने करीब थी कि आश्चर्य होता है। तब हवाई जहाज का आविष्कार नहीं हुआ था। इस कहानी का वर्णन 103 वर्ष बाद चांद की ओर छोड़े गए अपोलो-8 नामक अंतरिक्ष यान से बहुत मिलता-जुलता था। जूल्स वर्न ने कहानी का अंतरिक्षयान फ्लोरिडा (अमेरिका) से 1 दिसंबर को छोड़ा था। अपोलो-8 यान 21 दिसंबर 1968 को छोड़ा गया। कहानी के यान और अपोलो-8 की ऊंचाई बराबर यानी 3.6 मीटर थी। कहानी के यान का भार 5,540 किलोग्राम और अपोलो-8 का भार 5,568 किलोग्राम था। कहानी के यान ने पृथ्वी से चंद्रमा तक 3,82,000 किलोमीटर की और अपोलो-8 ने 3,60,000 किलोमीटर की यात्रा की। जूल्स वर्न ने लिखा चांद पर न हवा है, न जीवन। वहां चट्टानें और गड्ढे हैं। 20 जुलाई 1969 को चांद पर उतरने वाले यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने भी यही देखा!

तुम्हें सुन कर हैरानी होगी कि जूल्स वर्न ने अपनी कहानी ‘पृथ्वी से चंद्रमा तक’ में जो कल्पना की थी वह सच के इतने करीब थी कि आश्चर्य होता है। तब हवाई जहाज का आविष्कार नहीं हुआ था। इस कहानी का वर्णन 103 वर्ष बाद चांद की ओर छोड़े गए अपोलो-8 नामक अंतरिक्ष यान से बहुत मिलता-जुलता था। जूल्स वर्न ने कहानी का अंतरिक्षयान फ्लोरिडा (अमेरिका) से 1 दिसंबर को छोड़ा था। अपोलो-8 यान 21 दिसंबर 1968 को छोड़ा गया। कहानी के यान और अपोलो-8 की ऊंचाई बराबर यानी 3.6 मीटर थी। कहानी के यान का भार 5,540 किलोग्राम और अपोलो-8 का भार 5,568 किलोग्राम था। कहानी के यान ने पृथ्वी से चंद्रमा तक 3,82,000 किलोमीटर की और अपोलो-8 ने 3,60,000 किलोमीटर की यात्रा की। जूल्स वर्न ने लिखा चांद पर न हवा है, न जीवन। वहां चट्टानें और गड्ढे हैं। 20 जुलाई 1969 को चांद पर उतरने वाले यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन ने भी यही देखा!

जिन दिनों जूल्स वर्न रोमांचक विज्ञान यात्राओं की कहानियां लिख रहे थे,

उन्हीं दिनों स्कॉटलैंड के एंड्रयू लैंग और प्रख्यात साहित्यकार ऑस्कर वाइल्ड परीकथाओं की रचना कर रहे थे। ‘द ब्लू फेयरी बुक’ और ‘राजकुमार प्रिजिओ’ लैंग की प्रसिद्ध पुस्तकें हैं। ऑस्कर वाइल्ड की सुंदर परीकथाएं ‘द हैप्पी प्रिंस एंड अदर टेल्स’ तथा ‘द हाउस ऑफ पोमे ग्रेनेट्स’ नामक दो पुस्तकों में संकलित की गई हैं। उन्हीं दिनों रूडयार्ड किपलिंग तुम्हारे लिए ‘द जंगल बुक’ में मोगली और जानवरों की कहानियां लिख रहे थे।

लेकिन, अंग्रेज विज्ञान कथाकार एच.जी. वेल्स ने विज्ञान कथाएं लिखीं। उन्होंने सन् 1885 में अपना प्रसिद्ध उपन्यास ‘टाइम म्यीन’ लिखा। उसके बाद ‘द इनविजिबल मैन’ और ‘वार ऑफ द वर्ल्ड्स ’ जैसी प्रसिद्ध विज्ञान कथाएं लिखीं। ‘वार ऑफ द वर्ल्ड्स’ में मंगलवासी जीव पृथ्वी के निवासियों पर हमला कर देते हैं। लेकिन, बाद में वे पृथ्वी के सूक्ष्मजीवों के कारण मारे जाते हैं। वेल्स को भी विज्ञान कथाओं का जनक माना जाता है।

अमेरिकी लेखक लाइमन फ्रैंक बॉम ने सन् 1901 में बिजली-परी पर एक पुस्तक लिखी। अंग्रेजी की उस पुस्तक का नाम बहुत लंबा था जिसे हिंदी में हम इस तरह लिख सकते हैं, ‘मास्टर चाबीः बिजली के रहस्यों और इसके उपासकों के आशावाद पर आधारित बिजली-परी की कहानी। यह बालकों के लिए लिखी गई, लेकिन अन्य लोग भी इसे पढ़ सकते हैं।’ इस कहानी के हीरो के पास बिजली की बंदूक और गुरूत्वाकर्षण से बचने की युक्ति थी।

दोस्तो, पिछले सौ-सवा सौ वर्षों में दुनिया भर के विज्ञान कथाकारों ने बहुत मजेदार विज्ञान कथाएं लिखी हैं। उनमें आने वाले कल की तस्वीर दिखाई देती है। वे हमें बताते हैं कि जाग जाओ, कल ऐसा भी हो सकता है। इनमें से कई विज्ञान कथाओं पर बहुत अच्छी फिल्में भी बनीं। विज्ञान कथाएं नाटकों के रूप में भी लिखी जाती हैं। अच्छा, चलो अब कुछ प्रसिद्ध विज्ञान कथाओं की बातें करते हैं।

the-lost-world सन् 1912 में ‘शरलक होम्स’ की जासूसी कहानियों के प्रसिद्ध लेखक आर्थर कानन डायल का ‘लॉस्ट वर्ल्ड’ उपन्यास छपा। उपन्यास के नायक प्रोफेसर चैलेंजर अपने दल के साथ दक्षिण अमेरिका के एक दुर्गम पठार पर जाते हैं। वहां डायनोसोरों और आदि मानवों से उनका सामना होता है। इस कहानी पर फिल्में भी बनी। चैकोस्लोवाकिया के लेखक कारेल कापेक ने सन् 1921 में ‘आर यू आर’ नामक लंबा नाटक लिखा। इसमें हू-ब-हू मनुष्यों जैसे रोबोट थे। वे आदमियों के खिलाफ हो जाते हैं। दोस्तो, ‘रोबोट’ शब्द कापेक के इसी नाटक की देन है।

आल्डस हक्सले ने सन् 1932 में छपे अपने ‘ब्रेव न्यू वल्र्ड’ उपन्यास में प्रयोगशाला में शिशुओं के जन्म की कहानी कही है। तुम जानते हो, आज दुनिया भर में हजारों परखनली शिशु पैदा हो चुके हैं। रूसी लेखक अनातोले शेनेप्रोव ने अपनी ‘केकड़े’ कहानी में बताया कि गलत आविष्कार कितना घातक हो सकता है। इंजीनियर कुकलिंग एक द्वीप पर रोबोट केकड़े बनाता है जो स्वयं नए केकड़े बनाने लगते हैं। वे अंत में कुकलिंग को ही मार डालते हैं।

तुमने आर्थर क्लार्क की ‘सेंटिनल’ कहानी पर बनी ‘2001: स्पेस ऑडिसी’ फिल्म देखी होगी। यह अंतरिक्ष के अबूझ रहस्यों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। उन्होंने सन् 1952 में क्यिोरों के लिए ‘आइलैंड्स इन द स्काई’ उपन्यास लिखा। उसका क्यिोर नायक एक अंतरिक्ष प्रश्नोत्तरी में विजयी होता है और अंतरिक्ष स्टेशन की सैर करता है। जरा सोचो दोस्तो, तब अंतरिक्ष में उपग्रह भी नहीं भेजा गया था लेकिन, क्लार्क ने अंतरिक्ष स्टेशन की कल्पना कर ली थी।

विज्ञान कथाकार आइजक असिमोव ने अनेक उपन्यास और विज्ञान कथाएं लिखीं। उनकी ‘फाउंडेशन’ सीरीज को विश्व की सर्वोत्तम विज्ञान कथा-माला माना जाता है। उन्होंने सन् 1966 में बनी ‘फेंटास्टिक वॉएज’ फिल्म के आधार पर भी एक उपन्यास लिखा। उसमें डॉक्टरों के एक दल को सूक्ष्म रूप में बदल दिया जाता है और सूक्ष्म पनडुब्बी में बैठा करjurassic_park इंजैक्शन से एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के शरीर में पहुंचा दिया जाता है। वे वैज्ञानिक के दिमाग में बना खून का थक्का हटाते हैं। बाद में वे आंसू की बूंद के साथ बाहर निकल आते हैं!
मैं जानता हूं, तुमने विज्ञान कथाओं पर बनी ‘क्लोज एंकाउंटर्स ऑफ द थर्ड काइंड’, ‘ई.टी.’, ‘प्लेनेट ऑफ एप्स’ तथा ‘जुरेसिक पार्क’ जैसी प्रसिद्ध फिल्में और ‘स्टार ट्रैक’ जैसे सीरियल जरूर देखे होंगे। ‘क्लोज इंकाउंटर्स…’ और ‘ई.टी.’ में तुम्हारी एलियन से भेंट हुई होगी। ‘प्लेनेट ऑफ एप्स’ में एक ऐसा ग्रह है जहां मनुष्य तो जानवर ही रह गए हैं लेकिन गोरिल्ला और चिंपाजी सभ्यता की दौड़ में आगे निकल गए। ‘जुरैसिक पार्क’ में वैज्ञानिक प्राचीनकाल के मच्छरों के पेट से डाइनोसोरों का डी एन ए निकाल कर नए डाइनोसोर तैयार कर लेते हैं। वे आतंक मचा देते हैं।

तो दोस्तो, इस तरह तुम्हारी प्रिय कहानियां दादी-नानी की परीकथाओं से लेकर विज्ञान कथाओं तक पहुंच गई हैं। तुम विज्ञान के ताने-बाने से बुनी इन मजेदार कहानियों को पढ़ना और खुद भी लिखने की कोशिश करना। हो सकता है, कल तुम भी विज्ञान कथाकार बनो।

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